पत्रकार सुरक्षा कानून बना नहीं 01 पत्रकार के साथ हुआ अन्याय
पत्रकार सुरक्षा कानून बना नहीं 01 पत्रकार के साथ हुआ अन्याय

पत्रकार सुरक्षा कानून बना नहीं 01 पत्रकार के साथ हुआ अन्याय

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पत्रकार सुरक्षा कानून बना नहीं 01 पत्रकार के साथ हुआ अन्याय आदिवासी पत्रकार विनोद नेताम के साथ पूर्व विधायक और उसके साथीगण मारपीट किया एफआईआर दर्ज है।

विनोद नेताम

पत्रकार सुरक्षा कानून बना नहीं 01 पत्रकार के साथ हुआ अन्याय

विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित अखबारों को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है। किन्तु इस समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। बता दें कि दुनियाभर में मीडिया कार्पोरेट के हाथ में है जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फ़ायदा कमाना है। वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है ही नहीं। बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वे फैंसी जीवनशैली के आदी हो गए हैं। वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन या दंड के डर के प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। इस स्वतंत्रता को सरकारें, जनसंचार कम्पनियाँ, और अन्य संस्थाएँ बाधित कर सकती हैं। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त ‘अभिव्यक्ति’ शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। विचारों का स्वतन्त्र प्रसारण ही इस स्वतन्त्रता का मुख्य उद्देश्य है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित(Communicate) कर सके। इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है।

पत्रकार विनोद नेताम के साथ पूर्व विधायक ने की मारपीट

जिले मे कुछ दिनों से लोगो के जहन मे यह सवाल तो है आदिवासी पत्रकार विनोद नेताम के साथ पूर्व विधायक और उसके साथीगण मारपीट किया जिसके बाद उसको न्याय नहीं मिल पाया है। चौथा स्तम्भ पर प्रहार हो हुआ लेकिन न्यायालय पर भरोसा कर रहे प्रहरी पर जिले के रसुखदार का प्रभाव सर चड़कर बोल रहा है, जिसके बाद अब न्यायालयीन प्रक्रिया पर लोग काफी स्तब्ध हैं। एक आदिवासी पत्रकार के साथ यह घटना 30 जुलाई को हुई थी लेकिन अब तक सिर्फ और सिर्फ जांच हो रही थी इसे लेकर शासन प्रशासन, सत्ता पक्ष का रवैया उदासीन नजर आया और आज लोकतंत्र और प्रजातंत्र का अर्थ समझ नहीं आ रहा है।

यह एक पत्रकार पर कविता है जो लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ को समर्पित है जो दिन रात कड़ी मेहनत और लगन शीलता से हम सब लोगों तक न केवल खबरें पहुंचाते हैं बल्कि समाज को सच्चाई से भी रूबरू कराते हैं।

अत्याचार अन्याय के विरुद्ध, भरता नित नई हूंकार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ हूँ,
अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूँ।
मजदूर और मजबूर की आवाज,
समाज का एक अभिन्न अंग हूँ।
सच के लिए हरदम लड़ूँ,
निर्भीक हूँ नहीं लाचार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

मेरी आवाज को रुकना कभी आया नहीं,
मेरी कलम को झुकना कभी आया नहीं।
रोज मिलते हैं सियासत के नए पहरेदार,
पर मेरे अस्तित्व को कोई गिरा पाया नहीं।
आईना दिखाने का साहस है मुझमें,
झूठ के लिए मैं उसकी हार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था की आधारशिला है। प्रत्येक प्रजातान्त्रिक सरकार इस स्वतन्त्रता को बड़ा महत्व देती है। इसके बिना जनता की तार्किक एवं आलोचनात्मक शक्ति, जो प्रजातान्त्रिक सरकार के समुचित संचालन के लिए आवश्यक है, को विकसित करना सम्भव नहीं है।

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